Wednesday, October 20, 2010

एक शाम गुजारे साथ-साथ

आओ सखी साथ एक शाम गुजारे
हरे नरम घास पर बैठे डूबते सूरज को देखे
अलसाए हुए बिना कुछ कहे एक दुसरे को घंटो निहारें
आओ सखी साथ एक शाम गुजारे |

फैसला ये तुमको करना हीं होगा आज
क्या तुम्हे भी मुझ पर है इतना नाज़
क्या हम भी तुम्हे लगते है इतने हीं प्यारे
आओ सखी साथ एक शाम गुजारे |

जिंदगी है एक सफ़र पर ठहराव तो चाहिए
गलियों से गुजारे कितने मगर अपना एक गाँव तो चाहिए
प्रेम की बस्ती हो किसी नदिया किनारे
आओ सखी साथ एक शाम गुजारे |

ये पल फिर नहीं आयेंगे बार-बार
हांथों में हाँथ डाल आज कर लो इकरार
या लाज के घुंघट से हीं कुछ तो करो इशारे
आओ सखी साथ एक शाम गुजारे |

अपना मुझे कभी तुमने कहा कि नहीं
क्या करूँ नादान हूँ ,कुछ समझता नहीं
सताओ न यूँ , ना सताके तुम
गुस्सा करो मुझसे रूठी रहो,नखरे सहूँ सभी मैं तुम्हारे
आओ सखी साथ एक शाम गुजारे |

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